शनि चालीसा भगवान शनि देव की महिमा का गुणगान करने वाला एक अत्यंत प्रभावशाली स्तोत्र है। शनि देव को न्याय के देवता और कर्मों के फलदाता के रूप में जाना जाता है।
जो भी व्यक्ति श्रद्धा और विश्वास के साथ शनि चालीसा का पाठ करता है, उसके कष्ट कम होते हैं ।
Shani chalisa में चालीस चौपाइयों के माध्यम से भगवान शनि देव के स्वरूप, उनके चरित्र, उनकी कृपा तथा उनके प्रभाव का सुंदर वर्णन किया गया है। इस चालीसा का नियमित पाठ करने से शनि देव की कृपा प्राप्त होती है, सभी बाधाएँ दूर होती हैं, और जीवन में सुख-समृद्धि तथा शांति का संचार होता है।
|| श्री शनि चालीसा ||
|| दोहा ||
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल।
दीनन के दुख दूर करि, कीजै नाथ निहाल॥
जय जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महाराज।
करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज॥
|| चौपाई ||
जयति जयति शनिदेव दयाला।
करत सदा भक्तन प्रतिपाला॥
चारि भुजा, तनु श्याम विराजै।
माथे रतन मुकुट छबि छाजै॥
परम विशाल मनोहर भाला।
टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला॥
कुण्डल श्रवण चमाचम चमके।
हिये माल मुक्तन मणि दमके॥
कर में गदा त्रिशूल कुठारा।
पल बिच करैं अरिहिं संहारा॥
पिंगल, कृष्णो, छाया नन्दन।
यम कोणस्थ रौद्र दुःख भंजन॥
सौरि मन्द शनी दश नामा।
भानु पुत्रा पूजहिं सब कामा॥
जापर प्रभु प्रसन्न हों जाहीं।
रंकहु राउ करें क्षण माहीं॥
पर्वतहूं तृण होई निहारत।
तृणहूं को पर्वत करि डारत॥
राज मिलत बन रामहि दीन्हा।
कैकइहूं की मति हरि लीन्हा॥
बनहूं में मृग कपट दिखाई।
मात जानकी गई चुराई॥
लषणहि शक्ति बिकल करि डारा।
मचि गयो दल में हाहाकारा॥
दियो कीट करि कंचन लंका।
बजि बजरंग वीर को डंका॥
नृप विक्रम पर जब पगु धारा।
चित्रा मयूर निगलि गै हारा॥
हार नौलखा लाग्यो चोरी।
हाथ पैर डरवायो तोरी॥
भारी दशा निकृष्ट दिखाओ।
तेलिहुं घर कोल्हू चलवायौ॥
विनय राग दीपक महं कीन्हो।
तब प्रसन्न प्रभु ह्नै सुख दीन्हों॥
हरिशचन्द्रहुं नृप नारि बिकानी।
आपहुं भरे डोम घर पानी॥
वैसे नल पर दशा सिरानी।
भूंजी मीन कूद गई पानी॥
श्री शकंरहि गहो जब जाई।
पारवती को सती कराई॥
तनि बिलोकत ही करि रीसा।
नभ उड़ि गयो गौरि सुत सीसा॥
पाण्डव पर ह्नै दशा तुम्हारी।
बची द्रोपदी होति उघारी॥
कौरव की भी गति मति मारी।
युद्ध महाभारत करि डारी॥
रवि कहं मुख महं धरि तत्काला।
लेकर कूदि पर्यो पाताला॥
शेष देव लखि विनती लाई।
रवि को मुख ते दियो छुड़ाई॥
वाहन प्रभु के सात सुजाना।
गज दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना॥
जम्बुक सिंह आदि नख धारी।
सो फल ज्योतिष कहत पुकारी॥
ग्रह नक्षत्र सब तव प्रभु आज्ञा।
सूर्य आदि नहिं सकहिं बिरोधा॥